हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, अंजुमने शरई शियान जम्मू कश्मीर दार-ए-मुस्तफा ने मरकज़ी इमामबाड़ा बडगाम, कादिमे इमामबाड़ा हसनाबाद श्रीनगर, इमामबाड़ा यागीपुरा मगम, इमामबाड़ा गमदु, जामिया मस्जिद नौगाम सोनावारी और एसोसिएशन द्वारा प्रबंधित अन्य शुक्रवार केंद्रों में "यौम अली असगर" का आयोजन किया। इस आयोजन में माताएँ अपने शिशुओं और छोटे बच्चों को हज़रत अली असगर (अ) की पोशाक पहनाकर मातमी स्थानो पर ले आईं और अपने बच्चों को इमाम ज़मान (अ) की सुरक्षा में उनके सहयोग और सहायता के लिए सौंप दिया, और वचन दिया कि उनका बच्चा इमाम ज़मान (अ) का सिपाही बनेगा और उनके पुनः प्रकट होने के समय उनका साथ देगा।
इन सभाओं में बड़ी संख्या में महिलाएँ, विशेषकर शिशुओं की माताएँ अपने छोटे शिशुओं के साथ शामिल हुईं।
इस अवसर पर मकतबा अल-ज़हर , हसनाबाद, श्रीनगर के शिक्षकों और हौज़ा इल्मिया क़ोम के स्नातक छात्रों ने कर्बला की लड़ाई में महिलाओं और बच्चों की भूमिका के बारे में बताया और हज़रत अली असगर (अ) की हृदय विदारक शहादत की पृष्ठभूमि और अग्रभूमि का वर्णन किया।
शिक्षकों ने कर्बला की महिलाओं के दृढ़ संकल्प और दृढ़ता को सलाम किया और हजरत अली असगर (अ) की शहादत को कर्बला त्रासदी का सबसे दिल दहला देने वाला पहलू बताया। हजरत अली असगर की शहादत की घटना को समझाते हुए शिक्षकों ने कहा कि कर्बला के इस शिशु की शहादत यजीद और बाकी दुनिया के लिए यजीदी पहल का बचाव करने वाली विचारधारा को करारा जवाब है। उन्होंने कहा कि इस मासूम शिशु की शहादत ने दुनिया को यह स्पष्ट कर दिया कि कर्बला में मुसलमान तो दूर, उनके रक्षक भी इंसान कहलाने के लायक नहीं थे। इस अवसर पर कई महिलाओं ने मातमी गीत भी पढ़े।
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